भारतीय समाज, सामुदायिक समाज है। इसमें देश, काल और परिस्थिति के कारण रूप, रंग, भेष, भाषा की अनेक विविधताएं तो हैं लेकिन परस्पर एकीकरण और सामंजस्य का भाव भी विद्यमान है।
• समुदायों में अंतर्विरोध और संघर्ष होते रहते हैं। इसके समाधान हेतु उदार, कुशल एवं विवेकवान नेतृत्व की आवश्यकता होती है,जो अन्तरविरोधों में उचित सामंजस्य स्थापित करके, समाज के सामुदायिक स्वरूप को संरक्षित और संवर्धित करता है।
• नेतृत्व पर अब किसी एक वर्ग का अधिकार नहीं रह गया है, ऐसे सभी लोग जिनके अंदर क्षमता है, उनको पर्याप्त अवसर उपलब्ध हो रहा है लेकिन फिर भी जीवन के सभी क्षेत्रों में सही नेतृत्व का अभाव है।
• सामान्य जन को उचित मार्गदर्शन और प्रेरणा के लिए ऐसे सदविवेकी नेतृत्व की जरूरत है, जो न केवल आज की चुनौतियों का सामना करने में उसका सहायक बने, बल्कि सामुदायिक समाज के पुनर्जागरण का मार्ग भी प्रशस्त कर सके।
• सद्विवेकी नेतृत्व के विकास की जिम्मेदारी को भारत के गुरूकुलों ने पूरी निष्ठा से निभाया है। आधुनिक काल के कई संस्थानो ने भी अनेक व्यक्तित्व गढ़े हैं और समाज को उपकृत किया है।
• समूह, समुदाय, समाज, राज्य और बाजार, इन सभी में मनुष्य ही प्रमुख होता है। उसका कार्य और व्यवहार सभी को प्रभावित करता है। मनुष्य के व्यवहार में बदलाव संभव है। सही प्रक्रिया,अभ्यास और प्रेरणा से मानव व्यवहार में सकारात्मक बदलाव लाया जा सकता है।
• व्यक्ति भी प्रेरणा का एक महत्वपूर्ण कारक होता है। नेतृत्व क्षमता से सम्पन्न प्रभावशाली व्यक्तियों ने हजारों लोगों के नजरिये और व्यवहार में बदलाव कर दिया है।
• ऐसे रोल मॉडल वाले व्यक्तित्व और नेतृत्व स्वतःस्फूर्त भी होते हैं और आवश्यकता के अनुरूप इन्हें तैयार भी किया जा सकता है। पंचपरमेश्वर विद्यापीठ की परिकल्पना,विचार और प्रयास, उसी दायित्वबोध की अनुभूति से अभिप्रेरित है।